प्रिये, मैं तुममें हूँ सदा

प्रिये, मैं तो तुममें ही रहा हूँ सदा

कुछ नहीं होने की तरह

सदा सुलभ रहा तुम्हारे लिए

बस तेरी एक आलिंगन की प्रतीक्षा में

और सबकुछ हो जाने की सनक में।

और तुम?

तुम भी मुझमें रही हमेशा

किसी भयावह रात की तरह

चुराकर मेरे हृदय की आग

तुम जली किसी ज्योति की तरह

ले कर मेरा प्रकाश तू उज्जवल हुयी

और मैं राख में छिपा

धधकता रहा कटने और बंटने के लिए

मुरझाया सा, कुछ खंडित सा

कुछ टूटा सा और वंचित सा

बस भटकने के निमित्त है प्रेम मेरा

निर्लक्ष्य, निर्लज्ज और निर्गुण सा

हो गया हूँ मैं अब खंड-खंड

स्वयं में समेटे ज्वाला प्रचंड

चाहे ये हो, चाहे वो हो, हार नहीं मैं मानूंगा

साँसों में जब तक वायु है और जब तक मेरी आयु है।

हृदय के इस उद्वेग पर गुमान अभी भी बाकी है

मरे हुए से इस तन में जान अभी भी बाकी है।

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