जब मर्म पुराना जगता है

जब मर्म पुराना जगता है,

मत पूछो कैसा लगता है।

दिल में होता है दर्द कोई,

और मन ये रोने लगता है।

आँखें पथरा सी जाती हैं,

और साँसें भी थम जाती हैं,

कितना भी रोकूँ अश्कों को,

वो मुझको नम कर जाती हैं।

एक कसक हमेशा इस दिल में,

हर पल करवट सी लेती है,

कितनी भी चमक हो चेहरे पे,

दिल में बेचैनी रहती है ।

खाना-पीना, सोना-जगना

सब कुछ बेमानी लगती है,

और दुनिया की सारी खुशियाँ

बस आनी-जानी लगती हैं।

सहने की ताक़त दिया नहीं,

तो क्यूँ देता है दर्द ख़ुदा?

क्यूँ छोड़ दिया फिर जीने को,

यूँ जिस्म से कर के रूह जुदा?

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