एक सपना था

सपने तो बहुत से देखे थे मैंने, आज भी देखता हूँ,

कुछ अच्छे, कुछ बुरे, और कुछ ऐसे जो याद भी नहीं।

कुछ सपने सच न हो जाएं ये भय भी सताता है,

कुछ सपने सच क्यूं न हुए ये ग़म भी रुलाता है।

आखिर देखा ही क्या था मैंने, बस छोटी सी चाह ही तो थी।

सुना था चाहने वालों को राह मिल ही जाती है

तो फिर उस चाह की राह गुम सी क्यूं थी भला।

उसे सपने में देखने का सपना कभी न देखा था,

वो बस स्वप्न में ही आती रहे कभी न चाहा था,

फिर भी उस अनचाहे चाह की राह का राही क्यूं हूँ।

एक सपना ही तो देखा था मैंने उसे सोते हुए देखने का,

उसकी आँखों में आंखे डाल उसका हर सपना पढ़ने का,

उन सपनों को साकार करने के लिए हर किसी से लड़ने का।

जो रास्ते कभी ख़त्म ना हों उनपे साथ-साथ चलने का।

एक सपना था उसे अपलक देखते रहने का,

उसके बालों में उंगलियाँ फेरते हुए घंटो बात करने का,

उससे हर बात बताने का और हर बात पूछ लेने का।

एक सपना था उसके होठों पर मुस्कुराहट लाने का

और उसकी खिलखिलाहट के समंदर में डूब जाने का।

एक सपना था उसे सबके सामने अपना कहने का

उसपे हक़ जताने का और हर हाल में साथ रहने का।

एक सपना था दिल में दबे अहसासों को जताने का

कितना चाहता था उसको ये खुल कर बताने का।

एक सपना था उसकी रूह पर बादलों सा छा जाने का

और उसे निहारते हुए सबकुछ भूल जाने का।

एक सपना था उसका हाथ थामे ज़िन्दगी बिताने का

उसकी शरारतों पे मुस्कुराने का, उसे प्यार करना सीखाने का

एक सपना था जिन रातों में तरसा है दिल उन्हें महकाने का

उसके जिस्म से गुज़र कर उसकी रूह को पाने का।

हां, बस एक सपना था इस सपने को सच बनाने का

और उन सपनों को आंसुओं में बहाने का…

 

– Rakesh Shukla

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