क्यूँ प्रेम पगे मेरे मन को

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क्यूँ प्रेम पगे मेरे मन को तुम ठेस लगाया करते हो, खुद भी तुम आहत होते हो मुझको भी रुलाया करते हो।   अधिकार नहीं मेरा कोई तुम वर्जित फल मेरी ख़ातिर, उस सुखद स्वप्न के जैसे तुम जो हो ही नहीं सकता ज़ाहिर, ये सब सच है माना मैंने तुम क्यूँ जतलाया करते हो। … Read more